” हिन्दी भाषा की दशा एवं दिशा “
भारतवर्ष एक बहु भाषा -भाषी देश है । यहाँ के अधिकांश प्रदेशों मे बोलने, पढ़ने-लिखने और राजकाज मे पृथक-पृथक भाषा का उपयोग किया जाता है ,ऐसी स्थिति मे एक ही देश मे रहते हुये एक दूसरे की भाषा न तो बोल पाता है और न समझ पाता है ,तब किस प्रकार से राज काज चलेगा ? इस समस्या के समाधान के रूप मे भारतीय संविधान निर्माताओं ने देश की मात्र चौदह भाषाओं को राष्ट्रीय भाषायें माना ,लेकिन इतने भर से समस्या का समाधान नहीं हो रहा था ,प्रशासन और व्यावहारिक दृष्टि से एक राष्ट्र भाषा का होना जरूरी था , इसलिए राष्ट्र भाषा के मानकों मे सर्वश्रेष्ठ होंने तथा देश मे सबसे अधिक लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने के आधार पर हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया , लेकिन दुःख है इस बात का कि स्वतन्त्रता मिले चहोत्तर बसन्त बीत जाने के बाद भी राष्ट्र भाषा के पद पर हिन्दी का राज्याभिषेक न हो सका ! यह कतने दुःख की बात है ! इस बात को सभी भलीभांति समझते हैं , लेकिन सवाल यह है कि ऐसी आई ही क्यों और कैसे है ? लगता है कथनी और करनी इसका सबसे बड़ा कारण है। हम जो मुँह से बोल रहे हैं उसको करने के लिये हमारी अन्तरात्मा शायद गवाही नहीं दे रही है ! इससे यही साबित होता है।
जिस राष्ट्र की राष्ट्र भाषा ही नहीं है उसका विकास ,राज -काज कैसे होगा भगवान ही जाने । यह सभी जानते हैं कि व्यक्तिगत और राष्ट्रीय उन्नति के लिये एक सर्व मान्य भाषा का होना बहुत जरूरी है ,लेकिन अभी तक इसमें निराशा ही हाथ लगी है , जबकि भाषा के विकास ,प्रचार – प्रसार मे साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।देश को स्वतन्त्रता दिलाने से लेकर हिन्दी के विकास मे उनकी भूमिका प्रशंसनीय ही नहीं स्तुत्य भी है ।
हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है उसका शब्द भण्डार विस्तृत है ,पढ़ने – लिखने और समझने मे सरल है साथ ही विकास पथ पर निरन्तर विकसित होने की सामर्थ्य से परिपूर्ण है ,तब इसके प्रति कैसा उपेझापूर्ण व्यवहार ! इस दिशा मे शासन – प्रशासन से लेकर जन सामान्य ,शिक्षाविदों , नीति नियन्ताओं , भाषाविदों ,साहित्यकारों आदि सभी को एक मंच पर आना होगा । राष्ट्रीय ध्वज की तरह हिन्दी भाषा को स्वीकारना होगा ।विषय विशेषज्ञों को भाषा की कठिनाइयों को दूर कर जनसामान्य के अनुकूल बनाने का प्रयास करना होगा ।
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 मे कुछ प्राविधान इस दिशा मे मील का पत्थर साबित होंगे ।कक्षा पाँच तक अनिवार्य रूप से मातृभाषा और स्थानीय भाषा मे पढ़ाई का प्राविधान एक सकारात्मक पहल है जिसके भविष्य मे अच्छे परिणाम निकलेंगे ।
इस दिशा मे सम्पूर्ण देश को एकता का परिचय दिखाना होगा ।
( स्वरचित ,मौलिक,अप्रकाशित एवं अप्रसारित रचना ।)
– डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम/पो. पुजार गाँव(चन्द्र वदनी)
जिला- टिहरी गढ़वाल – 249122(उत्तराखंड)