मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे !
मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे, रतिका कामनी बड़ सोहे ,
दीप्तिमान शशिका अति आली, जहां जाये चांदना होहे !
तीनों लोक भुवन में घूमा, ना दिखा सजीला ऐसा कोहे ,
रंग बानगी अतुलित शोभित,अपलक नयन निहारे तोहे!!
मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे . . .
जो माया सबका मन हरती, उसका भी तोपे मन आया ,
कैसा रुप विरल निराला , देवों तक का चित भरमाया !
अड़िग महेश भी अस्थिर , ब्रह्मा भी ताके छुप छुप के ,
शुभ्र लावण्य गर्वीली काठी, छूने को हर दिल ललचाया !
मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे . . .
निर्जीव में भी आई चेतना , निर्बल भी उठ खडा हुआ ,
जिसने भी देखी सुचितवन , असमंजस में पड़ा हुआ !
तारा मंडल झुक झुक नीचे , करे मान तेरा अभिनंदन ,
अधरों की मंद मंद स्मिता, करे लाज से प्रणय निवेदन !!
मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे . . .
उत्कृष्ट भावभंगिमा ऐसी, लख लोक परलोक अभिभूत ,
किसकी मोहक ऐसी रचना, जो न्यारों में न्यारी अदभुत !
कहे नारद इसमें हरि दर्शन , दिखती विष्णु की परछांई ,
भस्मासुर को भस्मित करने, स्वर्गद्वार से मोहिनी आई !!
मोहे मोहे मन मोहिनी मोहे . . .
लक्ष्य
एल . पी . शर्मा
जयपुर !
राज .