“ सहारा “
हे माँ,
तू मेरा प्रेम है,
तू मेरा सहारा। है,
तू मेरा संसार है,
तू जीवन में मोतियों का हार है,
किन शब्दों में करू मैं बखान तुम्हारा,
हर शब्द अधुरा लगता है,
तुझे कहूँ प्यार?
या ममता की मूरत?
या कहूँ तुझे
परमात्मा की सूरत
करती हूँ वंदना प्रभु से,
मुझे भी एक अवसर मिले,
मेरी माँ के चरणों में
ऐसा सहारा मिले,
जिसमें मैं अपना संसार बसा लुं,
जिसके चरणों की धूल को,
अपने सिर का ताज बना लुं,
जिससे संवर जाये जीवन मेरा..!
—डॉ .दक्षा जोशी ,
गुजरात ।