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एक मुट्ठी आसमान - डॉ दक्षा जोशी


“ एक मुट्ठी आसमान “

चाहती हूँ एक मुट्ठी आसमान।
सुनता है तू आसमान?
तेरी ऊँचाई छूना चाहती हूँ-
अपनी साधना को साधकर ,
अपनी भावना को माँजकर ,
अपनी कामना को जीतकर!
तेरी शून्यता में समायी है
ब्रह्मांड की सम्पूर्णता,
तेरी ऊँचाई से सजती है
धरती की सुन्दरता ।
आसमान,मैं तेरा हिस्सा 
बनना चाहती हूँ!
अपनी सीमाओं में बँधकर,
अपनी दिव्यताओं को निखारकर, अपने सीने में बसते सूरज की गरमी को,चाँद की चाँदनी को,
सितारों की झिलमिलाहटों को,
काले-काले मेघों के अम्बारों को,
नक्षत्रों के बन्घनों को ,
अपनी शून्यता में छिपाये रखता तू
सृष्टि-प्रलय के क्रम को ।
आसमान,मैं इस क्रम को 
देखना चाहती हूँ
अपनी मर्यादाओं को पालकर ।
एक मुट्ठी आसमान चाहती हूँ,
कल्पनाओं को संभावनाओं में ढालकर!

-डॉ दक्षा जोशी "निर्झरा"
गुजरात ।

تعليق واحد

  1. नही मिल सकता कभी किसी को भी एक मुठ्ठी आसमान,,,,,
    चाहे कितने ही ऊंचे जा कर छू लो आसमान,,,,
    ढूंढो इसे सारी फलक फिजा और कायनात मे,,
    दिल से देखो तो मिल जायेगा ये एक मुट्ठी ऐसा
    आसमान, अपने ही परिवार से,,,,,
    A Writer and Poet
    Deepak Poojara,
    Retired Inspector of
    Rajkot Municipal
    corporation , Rajkot
    Gujarat State, India
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