" परिवार"
परिवार के अनमोल रिश्तों के,
आँगन में झूमे जैसे बहार का,
इन अनमोल रिश्तों को बाँधे,
बनके धागा हो प्रेम प्यार का।
ख़ुशियों के सारे पत्ते निकले,
दुःख ना हो जिसमें हार का।
सुख - दुःख चाहे कितने आये,
साथ हो अपने परिवार का।
नयी दिशाएँ बाँह फैलाए,
स्वागत करती बहार का।
अंधकार को हम मिटा कर,
फूल बने उजियार का।
नफ़रतों को क्यों हम बाँटे,
नस्लें बोयें प्यार की,
कुछ अपनों के विश्वास की,
कुछ सपनों के संसार की।
जलते थारों के बीच में,
वृक्ष बने हम छाँव का।
आओ पौधा एक लगाएँ,
कुछ अपनो के प्यार का।
-डॉ दक्षा जोशी
अहमदाबाद
गुजरात ।