“ क्या है कविता “
कविता, कवि की है आत्मजा
या सूर्य-रश्मि की सविता है,
गंगोत्री के पावन कण जैसी
शब्दों की बहती सरिता है...
'कविता" में ‘क’ की कोमलता
‘वि’ से विचार धारा-प्रवाह,
‘ता’ से तापस, तादात्म्य-बोध
दिखलाती कवि के
मन की चाह...!
कात्यायन की कात्यायनी है
रस, अलंकार से सजी हुई,
जब कोमल मन से
निकलती है
तब “कंकन किंकिन” सी बजी हुई..
वर्णों की माला पहनाकर
शब्दों की महिमा बुनती है,
कहीं कृष्णवर्ण, कहीं गौरवर्ण,
कहीं पीतवर्ण से गुनती है...
कविता, कवि की मुंहबोली है
आती, रस का सिंगार किए,
कभी रौद्र, हास्य और करुण वेश
कभी आँखों में अंगार लिए...
कविता, माँ की है वत्सलता
कभी राग विराग लिए मन में
कविता, प्रेयसी का संयोग राग
कभी ले वियोग अंतर्मन में...
कविता कवि का व्यक्तित्व रूप
मन-चिन्तन की प्रतिछाया है,
कवि दिखे, दिखे या नहीं दिखे
कविता ही उसकी काया है...
- डॉ .दक्षा जोशी "निर्झरा",
गुजरात ।