गीतिका
प्रेम समर्पण कर लो
मापनी 1222 1222 1222 1222
झुकाकर झील सी आँखें समर्पण प्रेम में कर लो।
अगन जलती हृदय मेरे सखी संताप सब हर लो।।
अधर यह काँपते संकेत मुझको प्रेम का देते।
भुलाकर लाज सारी तुम मुझे बस अंक में भर लो।।
गगन में चाँद खिलता है मगर काया न शीतल हो।
तपन तन की बुझाने को सरोवर प्रीत का भर लो।।
मधुर यह यामिनी उनकी जिन्हें प्रियतम मिला उनका।
हमें चाहत यही है थाम तुम यह देह जर्जर लो।।
सपन में आपकी छवि हर घड़ी मुझको दिखा करती।
नहीं यह काल्पनिक हो प्रेम इसको वास्तविक कर लो।।
ऋतु अग्रवाल
मेरठ,उत्तर प्रदेश